प्रत्यक्ष कुरूते परोक्षममृतं हालाहलं तत्क्षणात्।।
तामाराधय सत्क्रियां भगवती भोक्तुं फलं वाञ्छितम्।
हे साधो व्यसनैर्गुणेषु विपुलेष्वायास्थां वृथा माकृथा।।
अर्थः - जो सत्किया दुष्टों को साधुता देती है, मूर्खों को पण्डितता, शत्रुओं को मित्रता, गुप्त बातों को प्रगट और विष को अमृत बनाती है। हे साधो! यदि वांछित फल भोगना चाहते हो तो हठ और कष्ट से अनेक गुणों के साधन में व्यर्थ समय नष्ट न करो बल्कि उसी सत्किया रूपी भगवती की आराधना करो अर्थात् श्रेष्ठ आचरण वाले बनो।
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