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रविवार, 5 मार्च 2023

शिवध्यानम्


ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु,पाणौ सदा यस्य वै।
फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं,घं घं च घण्टा रवम् ॥
वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं,कारुण्य पुण्यात् परम्॥
भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं,ध्यायेत् शिवं शंकरम्॥

यावत् तोय धरा धरा धर धरा ,धारा धरा भूधरा।।
यावत् चारू सुचारू चारू चमरं, चामीकरं चामरं।।
यावत् रावण राम राम रमणं, रामायणे श्रूयताम्।
तावत् भोग विभोग भोगमतुलम् यो गायते नित्यशः॥

यस्यास्ते द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं, टंट टं टं टटं टं।
तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं ,खंख खंख सखंखम्॥
डंसं डंसं डु डंसं डुहि डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम्।।
ध्यायन्ते विप्रगान्ते वसतु च सकलं पातु नो चन्द्रचूड़ ||

चैतन्यं मनं मनं मनमनं मानं मनं मानसम!
माया ज्वार धवं धवं धव धवं धावं धवं माधवं
स्वाहा चार चरं चर चरं चारं चरं वाचरं 
वैकुंठाधिपते भवं भवभवं भावंभवं शांभवं !!

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

नीति श्लोक

आशा नाम नदी मनोरथजला तृष्णातरंगाकुला,  रागग्राहवती वितर्कविहगा धैर्यद्रुमध्वंसिनी।   मोहावर्तसुदुस्तरातिगहना प्रोत्तुंगचिन्तातटी,   
तस्या: पारगता विशुद्धमनसो नन्दन्ति योगीश्वरा:।।                                            (वैराग्यशतक - ४५)  
           अर्थात - आशा एक नदी है जिसमे मनोरथ रूपी जल है, तृष्णारूपी तरंगें उठ रही हैं, राग रूपी ग्राह है, वितर्करूपी पक्षी है, यह आशारूपी नदी धैर्यरूपी वृक्ष को उखाड़ फेंकनेवाली है। इसमें अज्ञानरूपी भंवर है, जिनके पर जाना कठिन है और जो अतिगहन है, इसके चिन्तारूपी तट बहुत ऊंचे हैं, उसके पार जाकर विशुद्ध मन वाले योगीराज ही आनन्दित होते हैं।

शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने हितोपदेश ।।

अर्थात -हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते, साधु सर्वत्र नहीं होते, हर एक वन में चंदन नहीं होता. उसी प्रकार दुनिया में भली चीजें प्रचुर मात्रा में सभी जगह नहीं मिलती


अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम् ।।

अर्थात - ये मेरा है, वह उसका है जैसे विचार केवल संकुचित मस्तिष्क वाले लोग ही सोचते हैं. विस्तृत मस्तिष्क वाले लोगों के विचार से तो वसुधा एक कुटुम्ब है


काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम ।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।

अर्थात - बुद्धिमान व्यक्ति काव्य, शास्त्र आदि का पठन करके अपना मनोविनोद करते हुए समय को व्यतीत करता है और मूर्ख सोकर या कलह करके समय बिताता है

रविवार, 8 दिसंबर 2019

सत्क्रिया की महिमा

या साधूंश्च खलाकरोति विदुषो मूर्खान्हितांव्देषिणः।
प्रत्यक्ष कुरूते परोक्षममृतं हालाहलं तत्क्षणात्।। 
तामाराधय सत्क्रियां भगवती भोक्तुं फलं वाञ्छितम्।
हे साधो व्यसनैर्गुणेषु विपुलेष्वायास्थां वृथा माकृथा।।
 अर्थः - जो सत्किया दुष्टों को साधुता देती है, मूर्खों को पण्डितता, शत्रुओं को मित्रता, गुप्त बातों को प्रगट और विष को अमृत बनाती है। हे साधो! यदि वांछित फल भोगना चाहते हो तो हठ और कष्ट  से अनेक गुणों के साधन में व्यर्थ समय नष्ट  न करो बल्कि उसी सत्किया रूपी भगवती की आराधना करो अर्थात्  श्रेष्ठ आचरण वाले बनो।