तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार!
फिर मेरा घर बना घोंसला सूखे तिनकों से तैयार,
तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार!
फिर मैं निकल पड़ी शाखों पर हरी भरी थी जो सुकुमार,
तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार!
लेकिन जब मैं आसमान में उडी दूर तक पंख पसार,
तभी समझ में मेरी आया बहुत बड़ा है यह संसार!
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