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मंगलवार, 5 सितंबर 2023

बहुत बड़ा है यह संसार

सबसे पहले मेरे घर का अंडे जैसा था आकार,

तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार!

फिर मेरा घर बना घोंसला सूखे तिनकों से तैयार,

तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार!

फिर मैं निकल पड़ी शाखों पर हरी भरी थी जो सुकुमार,

तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार!

लेकिन जब मैं आसमान में उडी दूर तक पंख पसार,

तभी समझ में मेरी आया बहुत बड़ा है यह संसार!

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सोमवार, 4 सितंबर 2023

थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले?

 
थाल सजाकर किसे पूजने 
चले प्रात ही मतवाले?
कहाँ चले तुम राम नाम का
पीताम्बर तन पर डाले?

कहाँ चले ले चन्दन अक्षत
बगल दबाए मृगछाला?
कहाँ चली यह सजी आरती?
कहाँ चली जूही माला?

ले मुंजी उपवीत मेखला
कहाँ चले तुम दीवाने?
जल से भरा कमंडलु लेकर
किसे चले तुम नहलाने?

मौलसिरी का यह गजरा
किसके गज से पावन होगा?
रोम कंटकित प्रेम - भरी
इन आँखों में सावन होगा?

चले झूमते मस्ती से तुम,
क्या अपना पथ आए भूल?
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा,
कहाँ चढ़ेगा माला - फूल?

इधर प्रयाग न गंगासागर,
इधर न रामेश्वर, काशी।
कहाँ किधर है तीर्थ तुम्हारा?
कहाँ चले तुम संन्यासी?

क्षण भर थमकर मुझे बता दो,
तुम्हें कहाँ को जाना है?
मन्त्र फूँकनेवाला जग पर
अजब तुम्हारा बाना है॥

नंगे पैर चल पड़े पागल,
काँटों की परवाह नहीं।
कितनी दूर अभी जाना है?
इधर विपिन है, राह नहीं॥

मुझे न जाना गंगासागर,
मुझे न रामेश्वर, काशी।
तीर्थराज चित्तौड़ देखने को
मेरी आँखें प्यासी॥

अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर
सुनकर वैरी की बोली
निकल पड़ी लेकर तलवारें
जहाँ जवानों की टोली,

जहाँ आन पर माँ - बहनों की
जला जला पावन होली
वीर - मंडली गर्वित स्वर से
जय माँ की जय जय बोली,

सुंदरियों ने जहाँ देश - हित
जौहर - व्रत करना सीखा,
स्वतंत्रता के लिए जहाँ
बच्चों ने भी मरना सीखा,

वहीं जा रहा पूजा करने,
लेने सतियों की पद-धूल।
वहीं हमारा दीप जलेगा,
वहीं चढ़ेगा माला - फूल॥

वहीं मिलेगी शान्ति, वहीं पर
स्वस्थ हमारा मन होगा।
प्रतिमा की पूजा होगी,
तलवारों का दर्शन होगा॥

वहाँ पद्मिनी जौहर-व्रत कर
चढ़ी चिता की ज्वाला पर,
क्षण भर वहीं समाधि लगेगी,
बैठ इसी मृगछाला पर॥

नहीं रही, पर चिता - भस्म तो
होगा ही उस रानी का।
पड़ा कहीं न कहीं होगा ही,
चरण - चिह्न महरानी का॥

उस पर ही ये पूजा के सामान
सभी अर्पण होंगे।
चिता - भस्म - कण ही रानी के, 
दर्शन - हित दर्पण होंगे॥

आतुर पथिक चरण छू छूकर
वीर - पुजारी से बोला;
और बैठने को तरु - नीचे,
कम्बल का आसन खोला॥

देरी तो होगी, पर प्रभुवर,
मैं न तुम्हें जाने दूँगा।
सती - कथा - रस पान करूँगा,
और मन्त्र गुरु से लूँगा॥

कहो रतन की पूत कहानी,
रानी का आख्यान कहो।
कहो सकल जौहर की गाथा,
जन जन का बलिदान कहो॥

कितनी रूपवती रानी थी?
पति में कितनी रमी हुई?
अनुष्ठान जौहर का कैसे?
संगर में क्या कमी हुई?

अरि के अत्याचारों की
तुम सँभल सँभलकर कथा कहो।
कैसे जली किले पर होली?
वीर सती की व्यथा कहो॥

                               .....श्यामनारायण पाण्डेय


पर्वत कहता शीश उठाकर, तुम भी ऊँचे बन जाओ।

पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।

समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी-मीठी मृदुल उमंग! ।

पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार! ।
                – सोहनलाल द्विवेदी (भारतीय कवि)

रविवार, 6 जून 2021

कविता- हम नन्हे मुन्ने हो चाहे पर नहीं किसी से कम





हम नन्हे मुन्ने हो चाहे पर नहीं किसी से कम|

आकाश तले जो फूल खिले वह फूल बनेंगे हम||

 बादल के घेरे में|

कुहरे के घेरे में|

भयभीत नहीं होंगे, 

घनघोर अंधेरे में|

हम दीपक भी हम सूरज भी तुम मत समझो शबनम|

अब जान गए यह नील गगन दिन-रात तपेंगे हम||1||

यह ऊंच-नीच क्या है? 

 यह जाति पात क्या है? 

 दीवार उठाने से, 

तो साथ छूटता है|

आंधी में भी उड़ता रहता इंसाफ बना परचम|

 इनकार करे संसार भले इंसान रहेंगे हम||2||

 आवाज देश की है, 

आशीष देश का है| 

आदेश हमें हो तो, 

यह शीश देश का है|

 जिसके आगे बेकार रहें दुनिया के एटम बम|

विश्वास भरी एक फौज नई तैयार करेंगे हम||3||

 हम नन्हे मुन्ने हो चाहे पर नहीं किसी से कम||*||

आकाश तले जो फूल खिले वह फूल बनेंगे हम||*||