लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह "दिनकर" लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रामधारी सिंह "दिनकर" लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 29 मार्च 2023

खम ठोक ठेलता है जब नर,पर्वत के जाते पाँव उखड़ ||

सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | 
शूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते ||
  विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं |
  मुख से नाकभी उफ कहते हैं,संकट का चरण न गहते हैं ||
जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग निरत नित रहते हैं |
शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को ||
    है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में |
   खम ठोक ठेलता है जब नर,पर्वत के जाते पाँव उखड़ ||
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है |
 गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर ||
        मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो |
        बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है ||
पीसा जाता जब इक्षुदण्ड, झरती रस की धारा अखंड |
 मेहंदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार ||
     जब फूल पिरोए जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं |
     वसुधा का नेता कौन हुआ ? भूखंड विजेता कौन हुआ ?
 अतुलित यश क्रेता कौन हुआ ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ ?
 जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया ||
     जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हम जगाते हैं |
     मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झंझोरते हैं पल-पल ||
सत्पथ की ओर लगाकर ही, जाते हैं हमें जगाकर ही |
 वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं ||
   वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड |
   वन में प्रसून तो खिलते हैं, बागों में शाल न मिलते हैं ||
        कंकरिया जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर |
        विपदाएं दूध पिलाती है, लोरी आँधियाँ सुनाती है ||
जो लाक्षागृह में जलते हैं, वे ही शूरमा निकलते हैं |
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा !
    जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे |
    तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिंगारी है ?
                                                  रामधारी सिंह "दिनकर"