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शुक्रवार, 3 मार्च 2023

दिनकर का जाति-प्रथा पर करारा प्रहार :- 'शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछने वाले'

फिरा कर्ण, त्यों 'साधु-साधु' कह उठे सकल नर-नारी,
राजवंश के नेताओं पर पड़ी विपद अति भारी।
द्रोण, भीष्म, अर्जुन, सब फीके, सब हो रहे उदास,
एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए, 'वीर! शाबाश!'

द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा,
अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा।
कृपाचार्य ने कहा- 'सुनो हे वीर युवक अनजान'
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।

'क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है, यों ही नहीं लड़ेगा,
जिस-तिस से हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा?
अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन,
नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो कौन?'

'जाति! हाय री जाति !' कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,
कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला
'जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषंड,
मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।

'ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,
शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले।
सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?
साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।

'मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो,
पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,
छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान।

'मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
'जाति-जाति' का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।

   ‘रश्मिरथी’ 1952 ई० में प्रकाशित हुआ था। रश्मिरथी का अर्थ ‘सूर्य का सारथी’ होता है। यह एक प्रसिद्ध ‘खण्डकाव्य’ है। यह खड़ीबोली में लिखा गया है। रश्मिरथी में कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का चित्रण किया गया है। दिनकर ने कर्ण को महा भारतीय कथानक से ऊपर उठाकर उसे नैतिकता और विश्वसनीयता की नई भूमि पर खड़ा करके उसे गौरव से विभूषित किया है। रश्मिरथी में दिनकर जी ने सभी सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को नये सिरे से परखा है। रश्मिरथी में कवि ने कर्ण को नायक बनाया है, अर्जुन गौणपात्र है।

रश्मिरथी में सात सर्ग है।

प्रथम सर्ग: कर्ण का शौर्य प्रदर्शन

दूसरा सर्ग: परशुराम के आश्रम वर्णन (आश्रमवास)

तीसरा सर्ग: कृष्ण का संदेश

चौथा सर्ग: कर्ण के महादान की कथा

पाँचवाँ सर्ग: माता कुन्ती की विनती

छठा सर्ग: शक्ति प्रदर्शन

साँतवा सर्ग: कर्ण के बलिदान की कथा 

       ‘रश्मिरथी’ महाकाव्य काव्य में रश्मिरथी कर्ण का नाम है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है। कर्ण महाभारत महाकाव्य का अत्यंत यशस्वी पात्र है। कर्ण का जन्म पाण्डवों की माता कुंती के गर्भ से उस समय हुआ था, जब कुन्ती अविवाहित थी। लोक-लज्जा के भय से बचने के लिए कुन्ती ने अपने नवजात शिशु को एक मंजूषा में बंद कर उसे नदी में बहा दिया था। वह मंजूषा अधिरथ नाम के एक सूत को मिला था। अधिरथ को कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने उस बच्चे का पालन-पोषण अपने पुत्र के जैसा किया। अधिरथ की धर्मपत्नी का नाम राधा था। राधा के द्वारा पालन-पोषण होने के कारण ही कर्ण का एक और नाम ‘राधेय’ भी है।