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मंगलवार, 2 मई 2023

संस्कृत साहित्य परिचय


       संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। इसका साहित्यिक प्रवाह वैदिक युग से आज तक अबाध गति से चल रहा है। श्रद्धावश लोग इसे देववाणी तथा सुरभारती भी कहते थे। यह अधिसंख्यक भारतीय भाषाओं की जननी तथा सम्पोषिका मानी जाती है। राष्ट्रीय एकता एवं विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसमें रचित साहित्य का सत्य, अहिंसा, राष्ट्रभक्ति पृथ्वी-प्रेम, परोपकार, त्याग तथा सत्कर्म आदि भावनाओं के प्रसारण में अमूल्य योगदान है। संस्कृत का समकालीन साहित्य आधुनिक समस्याओं तथा मानव के संघर्षों को भी आत्मसात् करता है, जिससे विश्व के अन्य साहित्य की तुलना में संस्कृत की संवेदनशीलता को न्यूनतर नहीं माना जा सकता है।

प्राचीनकाल में, संस्कृत की रचनाएँ हजारों वर्षों तक मौखिक परम्परा में सुरक्षित रहीं तो आज की संस्कृत कृतियों का वैज्ञानिक विकास तथा तकनीकी प्रगति के साथ समन्वय उन्हें अद्यतन बनाता है। यह गौरव का विषय है कि न्यूनतम चार हजार वर्षों की संस्कृत-साहित्य-धारा में भारतीय समाज का प्रत्यंकन प्रायः प्रामाणिक रूप से होता रहा है, जहाँ भारतीय संस्कृति की समन्वय प्रवृत्ति परिलक्षित होती है।

संस्कृत को मात्र प्राचीनता के लिए ही पढ़ना पर्याप्त नहीं है, अपितु अपने देश के बहुभाषिक परिदृश्य में संस्कृत की महत्ता राष्ट्र की एकता के लिए सर्वोपरि है। आधुनिक भारतीय भाषाओं पर संस्कृत के व्याकरण, शब्द-सम्पत्ति तथा वाक्य रचना का व्यापक प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ा है। अन्य भाषाओं के समान आधुनिक संस्कृत भारतीय बहुभाषिकता का एक अभिन्न अंग है। जिस प्रकार बहुभाषी कक्षा में अन्य भाषाओं को सीखने में संस्कृत सहायक होती है उसी प्रकार कक्षा में उपलब्ध बहुभाषिकता (Multi-lingualism) का संस्कृत सीखने में उपयोग किया जा सकता है।

प्राचीन संस्कृत साहित्य के दो रूप प्राप्त होते हैं-वैदिक तथा लौकिक । वैदिक साहित्य के अन्तर्गत संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद् ग्रन्थ आते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद इन चारों वेदों को संहिता कहते हैं। इन संहिताओं में जिन मंत्रों का संकलन है उनकी कर्मकाण्ड परक व्याख्या करने वाले ग्रन्थों को 'ब्राह्मण' कहा जाता है। आरण्यकों की रचना वनों में हुई। इनमें वैदिक कर्मकाण्ड की प्रतीकात्मक व्याख्या है। उपनिषदों