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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

नीति श्लोक

आशा नाम नदी मनोरथजला तृष्णातरंगाकुला,  रागग्राहवती वितर्कविहगा धैर्यद्रुमध्वंसिनी।   मोहावर्तसुदुस्तरातिगहना प्रोत्तुंगचिन्तातटी,   
तस्या: पारगता विशुद्धमनसो नन्दन्ति योगीश्वरा:।।                                            (वैराग्यशतक - ४५)  
           अर्थात - आशा एक नदी है जिसमे मनोरथ रूपी जल है, तृष्णारूपी तरंगें उठ रही हैं, राग रूपी ग्राह है, वितर्करूपी पक्षी है, यह आशारूपी नदी धैर्यरूपी वृक्ष को उखाड़ फेंकनेवाली है। इसमें अज्ञानरूपी भंवर है, जिनके पर जाना कठिन है और जो अतिगहन है, इसके चिन्तारूपी तट बहुत ऊंचे हैं, उसके पार जाकर विशुद्ध मन वाले योगीराज ही आनन्दित होते हैं।

शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने हितोपदेश ।।

अर्थात -हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते, साधु सर्वत्र नहीं होते, हर एक वन में चंदन नहीं होता. उसी प्रकार दुनिया में भली चीजें प्रचुर मात्रा में सभी जगह नहीं मिलती


अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम् ।।

अर्थात - ये मेरा है, वह उसका है जैसे विचार केवल संकुचित मस्तिष्क वाले लोग ही सोचते हैं. विस्तृत मस्तिष्क वाले लोगों के विचार से तो वसुधा एक कुटुम्ब है


काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम ।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।

अर्थात - बुद्धिमान व्यक्ति काव्य, शास्त्र आदि का पठन करके अपना मनोविनोद करते हुए समय को व्यतीत करता है और मूर्ख सोकर या कलह करके समय बिताता है

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