यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 17 जून 2021

काव्यप्रकाश - आचार्य मम्मट के अनुसार काव्य के भेद उदाहरण सहित

काव्यभेदाः

संस्कृत-काव्यशास्त्र-परम्परायाम इन्द्रियार्थसन्निकर्षम्य एवं रचनाशैल्या दृष्ट्या काव्यस्य नैक भेदा: विहिता सन्ति। काव्यस्य रचना सौष्ठव-ग्राह्यत्व-भाषागतभेदप्रभेदभ्यः विलक्षणस्य काव्यस्य अत्यधिक प्रधानप्राणभूततत्त्वयंग्यस्य सत्तात्मकताया: तथा उत्कर्षापकर्षस्य दृष्ट्वा ध्वनिकार-आनन्दवर्धनस्य मतमनुसृत्य आचार्यमम्मटेन काव्यस्य भेदा: त्रिधाप्रतिपादिता-

1. उत्तमकाव्यम् (ध्वनिकाव्यम्)
2. मध्यमकाव्यम् (गुणीभूतव्यंग्यकाव्यम्)
3. अधमकाव्यम् (चित्रकाव्यम्)

              1. उत्तमकाव्यम् - (ध्वनिकाव्यम्) -  आचार्यमम्मटस्य काव्यभेदविषयकं मत संक्षेपतः निम्नप्रकारेण निरूपयितुं शक्यम् – “इदमुत्तमतिशायिनि व्यंग्ये वाच्याद ध्वनिर्बुधै: कथितः।" अर्थात् यत्र वाच्यार्थस्य अपेक्षया व्यंग्यार्थस्य चमत्कारित्व प्राप्यते तत्रोत्तममं काव्यं भवति। विद्वांसः इदं ध्वनि काव्यमिति वदन्ति। उदाहरण-

       नि:शेषच्युतचंदनं   स्तनतटं   निर्मृष्टरागोधरो, 
       नेत्रे दूरमनञ्जने पुलकिता तन्वी  तवेयं तनुः । 
       मिथ्यावादिनि दूति बान्धवजनस्याज्ञातपीडागमे, 
       वापी स्नातुमितो गतासि न पुनस्तस्याधमस्यान्तिकम्।।
 
                अत्र वक्तुः बोद्धश्च वैशिष्ट्येन इदं स्पष्टं भवति यत्वं तमेव नायकमुपगताऽऽसी तथा रमणं गताऽऽसी, इदं मधुरं तथ्यमधमपदेन व्यज्यते । 
              अत्र वाच्यापेक्षया व्यंग्यार्थस्य अधिकचमत्कारित्वात् इदम् उत्तमकाव्यस्य अथवा ध्वनिकाव्य कोट्यामाधीयते।

            2. मध्यमकाव्यं गुणीभूतव्यंग्यकाव्यम् - आचार्यमम्मटः मध्यमकाव्यं वा गुणीभूतव्यंग्य काव्यं परिभाषमाणः अभिहितवान् “अतादृशि गुणीभूतव्यंग्यं व्यंग्ये तु मध्यमम।" अर्थात् तथाविधं वाच्यम्य अपेक्षया व्यंग्यार्थे द्वितीय प्रकारणं काव्यं भवति । भावोऽयं यद् यत्र वाच्यार्थस्य अपेक्षाया व्यंग्यार्थे अधिकः चमत्कारः न प्राप्येत तंत्र मध्यमं काव्यम् भवति । उदाहरणम् - 

       ग्रामतरुणं तरुण्या नववञ्जुमञ्जरीसनाथकरम् ।
       पश्यन्त्या भवति मुहुर्नितरां मलिना मुखच्छाया। |

             अत्र अशोकवृक्षम्य लतागृह ग्रामतरुणे समागमस्य संकेतं दत्त्वा गृहकार्ये व्यासक्तत्वात् तरुणी समयेन तत्र न गच्छति ( प्राप्ता भवति) तरुणश्च तत्र यथासमयं प्राप्तो भवति। तं दृष्ट्वा तरुण्याः मुखकान्तिः मलिना जायते । अत्र इत्थं व्यंग्यार्थस्य तुलनायां वाच्यार्थस्य समधिक चमत्कारित्वात् अत्र पद्ये गुणीभूतव्यंग्यकाव्यं मतम् ।

(iii) चित्रकाव्यमथवा अधमंकाव्यम् - शब्दचित्रं वाच्य चित्रमव्यंग्यं त्ववरं स्मृतम्- अर्थात् व्यंग्यार्थेन रहितं शब्दचित्रं तथा अर्थचित्रम्-इतिभेदद्वयेन अधमकाव्यं द्विधा भवति। उभयोः उदाहरणम् –

(i) शब्दचित्रम्

         स्वच्छन्दोच्छलदच्छकच्छकुहरच्छातेतराम्बुच्छटां
         मूर्च्छन्मोहमहर्षिहर्षविहितस्नानाह्निकालय वः।
         भिद्यादुद्यदुदारदर्दुरदरी    दीर्घादरिद्र्दुम
         द्रोहोद्रेकमहोर्भिमेदुरभदा मन्दाकिनी मन्दताम्॥

              उक्तोदाहरणे कोऽपि व्यंग्यार्थो न विद्यते केवलं शब्दानाम् अनुप्रासजन्य चमत्कार अस्ति, अत इदं चित्रकाव्यमुच्यते ।

(ii) अर्थ-चित्रम्

                विनिर्गतं मानदमात्त्ममन्दिराद्
                       भवत्युपश्रुत्य यदृच्छयापि यम्। 
                ससम्भ्रमेन्द्रद्रुतपातितार्गला
                        निमीलिताक्षीन भियामरावती ॥

अत्र भिया निमीलिताक्षीव अमरावती अत्र उत्प्रेक्षाऽलंकारस्य छटा विद्यते। रसस्य दृष्ट्या अत्र वीररस प्रतीयते, किन्तु कवेः तात्पर्य रसे न सत् उत्प्रेक्षायाः चमत्कारप्रदर्शने एवा केन्द्रितं दृश्यते । अतः अत्र अर्थ चित्रम् ।
सदाबहार पुष्प



मंगलवार, 8 जून 2021

चिन्तनीयम्

१.

२.

३.

४.

५.

६.

७.

८.

९.

१०.

एहि हसाम

१.

२.

३.

४.

५.

६.

७.            बुद्धिर्यस्य बलं तस्य
           एकस्मिन् वने एकः सिंहः वसति स्म । सः नित्यम् एकं पशुं खादति स्म । एकदा सिंहः अति क्षुधितः भवति । एकः शशकः तत्र आगच्छति । सः चतुरः भवति । सिंहः शशकं पश्यति । सः भीतः विलापं करोति । सिंहः तं पृच्छति-"त्वं कथं विलपसि" ?शशकः वदति-"महाराज ! वने एकः अन्यः सिंहः अस्ति । सः मम पुत्रान् खादति ।सिंहः कथयति-"कुत्र अस्ति सः अन्यः सिंहः" ?शशकः-"समीपे एकः कूपः अस्ति । सः तस्मिन् निवसति ।"क्रुद्धः सिंहः कथयति-"अहं तत्र गत्वा पश्यामि ।"शशक: वदति-"आगच्छतु,आगच्छतु ।" शशकः तं सिंहं कूपसमीपं नयति । सिंहः कूपस्य जले प्रतिबिम्बं पश्यति । सः कूपे कूर्दते म्रियते च ।शशकः स्वबुद्धिबलेन आत्मरक्षां करोति । सत्यम् इदं यत्- "बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् ।"

८.        तत् कथं करोमि ?
       वैद्यः -भवतः अस्वास्थ्यस्य कारणं मशकाः एव । भवान् एतत् लेप्यं लेपयतु । मशकाः भवन्तं न पीडयन्ति ।
      सोमः -परन्तु वैद्यमहोदय ! कथं मशकं गृहीत्वा तदुपरि एतद् लेपयामि इत्येव चिन्ता मम...।

९.                      इच्छा नास्ति..
          कश्चन नवयुवकः पत्नीम् उक्तवान्- "अयि प्रिये! अद्य आवाम् उपाहारमन्दिरे भोजनं कुर्वः। 
पत्नी- किमर्थम्....? 
मम पाकस्य रुचिः सम्यक् न भवति वा ?
पतिः- (मन्दध्वनिना) न..न,रुचिः तु सम्यक् एव भवति।
किन्तु अद्य अतीव श्रान्तः अस्मि।
अतः पात्रप्रक्षालने मम इच्छा नास्ति ।

१०.   शिक्षकः - वास्तवभ्रमयोः एकैकम् उदाहरणं वदतु रमेश ।रमेशः - भवान् पाठयन् अस्ति इत्येतत् वास्तवम् । वयं श्रृण्वन्तः स्मः इत्येषः भ्रमः ।
शिक्षकः - ! ! !

११. पत्नी - आर्यपुत्र ! भवान शतं वर्षाणि सुखेन सन्तोषेण च जीवेत् । तदर्थम् अहं व्रताचरणं कर्तुम् इच्छामि ।वदतु, अहं किं व्रतम् आचराणि ?
पतिः - भवती मौनव्रतम् आचरतु, पर्याप्तम् । ततः अहं सार्धैकशतं वर्षाणि जीविष्यामि आनन्देन ।

१२.

१३.

१४.

१५.

१६.

१७.

१८.

१९.

२०.

सुविचार

1.

2.

3.

4.

5.
6.

7.

8.

9.

10.
11.

12.
13.
14.


सुविचार

                                  1.
लोगों का क्या है चाय में मक्खी गिरे तो चाय फेकते हैं और घी में गिरे तो मक्खी फेंकता है। इसलिए जीवन में कुछ बनना है तो _"कीमती बनो”।_

2.
दूसरों की छांव में खड़े रहकर हम अपनी परछाई खो देते हैं। अपनी परछाई के लिए खुद धूप में खड़ा होना पड़ता है| 
3.
अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो पहले सूरज की तरह जलना होगा।
4.
अगर आपके ख्वाब बड़े हैं तो संघर्ष छोटा कैसे हो सकता है?
5.
कोई इतना अमीर नहीं होता कि अपना पुराना वक्त खरीद सकें, और कोई इतना गरीब नहीं होता की अपना आने वाला वक़्त ना बदल सके।
6.
खामोश रहने का अपना ही मज़ा है नींव के पत्थर कभी बोला नहीं करते ।
7.
जीवन में आगे बढ़ने के लिए पहले खुद को अपने नज़रों में उठाइये, दुनिया की नजरों में तो स्वयं ही उठ जायेंगे ।
8.
वक्त (Time) आपका है चाहो तो _सोना_ बना लो और चाहो तो _सोने_ में गुजार दो।
9.
नीचे गिरना एक दुर्घटना है, नीचे रहना एक विकल्प है।
10.
नया दिन है नयी बात करेंगे,
कल हार कर सोये थे आज फिर
एक नयी शुरुआत करेंगे !!
11.
किसी की "सलाह" से रास्ते जरूर
 मिलते हैं,
पर मंजिल तो खुद की "मेहनत" से
ही मिलती है !


               
          
               





        

        
      

रविवार, 6 जून 2021

संस्कृत-कार्यपत्रम्-1 कक्षा-६

                       कार्यपत्रम्

नाम-                             विषय अध्यापक का नाम -

कक्षा-           वर्ग-                 रोल नं.-

 

  1. दिये गये शब्दों को पढ़ो। नीले रंग से संस्कृत के शब्द वचनों के अनुसार दिए गए हैं। उन्हीं संस्कृत शब्दों का हिंदी अर्थ हरे रंग से उनके नीचे लिखा है।  संस्कृत भाषा में तीन वचन होते हैं एकवचन का मतलब जहां पर किसी वस्तु की संख्या 1 है। द्विवचन का मतलब जहां पर किसी वस्तु की संख्या 2 है और बहुवचन का मतलब है जहां पर कोई वस्तु तीन या उससे अधिक है।


एकवचन            द्विवचन                  बहुवचन

कपोतः              कपोतौ                    कपोताः

कबूतर             दो कबूतर             बहुत से कबूतर

मण्डूकः             मण्डूकौ                मण्डूकाः

मेढक               दो मेढक              बहुत से मेढक

कृषकः              कृषकौ                    कृषकाः

किसान           दो किसान             बहुत से किसान

वलिवर्दः          वलिवर्दौ                   वलिवर्दाः

बैल                 दो बैल                   बहुत से बैल

गायकः            गायकौ                      गायकाः

गायक             दो गायक               बहुत से गायक


प्रश्न. अब नीचे कुछ संस्कृत के शब्द और उनके अर्थ एकवचन में दिए जा रहे हैं। ऊपर की तालिका के अनुसार उन शब्दों के द्विवचन और बहुवचन रूप स्वयं से बनाएं और उनके हिंदी अर्थ भी लिखें।


एकवचन            द्विवचन                  बहुवचन

1.शिक्षकः           ……….                ………..

  अध्यापक          ……….                ………..

2.मयूरः              ……….                ………..

   मोर                ……….                ………..

3.बालकः           ……….                ………..

   बालक            ……….                ………..

4.चषकः            ……….                ………..

   गिलास            ……….                ………..

5.अर्चकः            ……….                ………..

   पुजारी            ……….                ………..



                                

प्रत्यभिज्ञा दर्शनविमर्श:| अशोक कुमार: विशिष्टाचार्य:

 https://drive.google.com/file/d/1JzeV_VRBvezgalabIbTen0xOzcwYm0FC/view?usp=drivesdk

पञ्चमः पाठः - सदाचारः

  आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः । नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।1।। अन्वय:- आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रि...