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सोमवार, 4 सितंबर 2023

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना l
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ll1ll

जो परमेश्वरी भगवती शारदा कुंदपुष्प, चंद्र और बर्फ के हार के समान श्वेत है और श्वेत वस्त्रों से सुशोभित हो रही है जिसके हाथों में वीणा का श्रेष्ठ दंड सुशोभित है. जो श्वेत कमल पर विराजमान है जिसकी स्तुति सदा ब्रह्मा विष्णु और महेश द्वारा की जाती है. वह परमेश्वरी समस्त दुर्मति को दूर करने वाली माँ सरस्वती मेरी रक्षा करेंl

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीम्, 
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ।।2।।

श्वेत रंग वाली ब्रह्मा के विचार के सार में लगी हुई, आदि शक्ति समस्त जगत में व्याप्त रहने वाली हाथों में वीणा और पुस्तक धारण करने वाली अभयदान को देने वाली तथा मूर्खता के अंधकार को दूर करने वाली हाथों में स्फटिक मणियों की माला धारण करने वाली श्वेत कमलासन पर विराजमान बुद्धि को देने वाली उस परम तेजस्वी मां सरस्वती के चरणों में मैं वंदना करता हूं।


https://youtu.be/DySzqHwNCxU?si=w6oYLj7VnhqPBttK

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

चटका, चटका, रे चटका

चटका चटका
चटका, चटका, रे चटका
चिँव्, चिँव् कूजसि त्वं विहगा ||

नीडे निवससि सुखेन डयसे
खादसि फलानि मधुराणि ।
विहरसि विमले विपुले गगने
नास्ति जनः खलु वारयिता ॥

चटका, चटका, रे चटका
चिँव्, चिँव् कूजसि त्वं विहगा ||

मातापिरौ इह मम न स्तः
एकाकी खलु खिन्नोऽहम् ।
एहि समीपं चिँव् चिँव् मित्र
ददामि तुभ्यं बहुधान्यम् ॥

चटका, चटका, रे चटका
चिँव्, चिँव् कूजसि त्वं विहगा ||

चणकं स्वीकुरु पिब रे नीरं
त्वं पुनरपि रट चिँव् चिँव् चिँव् ।
तोषय मां कुरु मधुरालापं
पाठय मामपि तव भाषाम् ॥

चटका, चटका, रे चटका
चिँव्, चिँव् कूजसि त्वं विहगा ||


रविवार, 6 अगस्त 2023

सरससुबोधा विश्वमनोज्ञा

सरससुबोधा विश्वमनोज्ञा

ललिता हृद्या रमणीया।

अमृतवाणी संस्कृतभाषा

       नैव क्लिष्टा न च कठिना॥    ॥नैव क्लिष्टा॥

                    कविकोकिल-वाल्मीकि-विरचिता

                    रामायणरमणीय कथा।    

                    अतीव-सरला मधुरमंजुला

                   नैव क्लिष्टा न च कठिना॥  ॥सुरस.....॥

व्यासविरचिता गणेशलिखिता

महाभारते पुण्यकथा।

कौरव - पाण्डव -संगरमथिता

 नैव क्लिष्टा न च कठिना॥          ॥सुरस.....॥

                    कुरूक्षेत्र-समरांगण - गीता

                    विश्ववन्दिता भगवद्‌गीता

                    अमृतमधुरा कर्मदीपिका               

                    नैव क्लिष्टा न च कठिना॥  ॥सुरस.....॥

कविकुलगुरू - नव - रसोन्मेषजा

ऋतु - रघु - कुमार - कविता।

विक्रम - शाकुन्तल - मालविका

नैव क्लिष्टा न च कठिना॥        ॥सुरस.....॥

जयतु संस्कृतम्।।                  जयतु भारतम्।।

https://youtu.be/VuuoR3m1Lm4

सोने का कौआ ( स्वर्णकाक: )


द्वितीयः पाठः स्वर्णकाकः

       प्रसंग:-    प्रस्तुत पाठ श्रीपद्मशास्त्री द्वारा रचित 'विश्वकथाशतकम्' नामक कथा संग्रह से लिया गया है। इसमें विविध देशों की सौ लोक कथाओं का वर्णन किया गया है। यह कथा वर्मा (म्यांमार) देश की श्रेष्ठ लोक कथा है। इस कथा में लोभ के दुष्परिणाम और त्याग के सुपरिणाम का वर्णन एक सुनहरे पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

                    कहानी- हिंदी अनुवाद 

     काफी समय पहले किसी गाँव में एक गरीब बुढ़िया स्त्री रहती थी। उसकी एक विनम्र और सुन्दर पुत्री थी। एक बार माता ने थाली में चावल रखकर पुत्री को आदेश दिया "धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा करना।" कुछ समय बाद एक विचित्र कौआ उड़कर उसके पास आया।
    इस प्रकार का सोने के पंखों वाला और चाँदी की चोंच वाला सुनहरा कौआ उसके द्वारा पहले नहीं देखा गया। उसको चावल खाते हुए और हँसते हुए देखकर लड़की ने रोना शुरू कर दिया। उसको रोकती हुई वह प्रार्थना करती है- 'चावल मत खाओ। मेरी माता अत्यन्त गरीब है।' सुनहरे पंखों वाला कौआ बोला, 'दुःख मत करो। सूर्योदय से पहले गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के नीचे तुम आ जाना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूँगा। खुशी में लड़की को नींद भी नहीं आई।
        सूर्योदय से पहले ही वह वहाँ पहुँच गई। वृक्ष के ऊपर देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई, क्योंकि वहाँ सोने का महल बना हुआ है। जब कौआ सोकर उठा तब उसने सोने की खिड़की में से कहा, 'हे बालिका ! तुम आ गई, बैठो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ, तो कहो सोने की उतारूँ, चाँदी की अथवा ताँबे की सीढ़ी उतारूँ? कन्या बोली, 'मैं गरीब माता की पुत्री हूँ। ताँबे की सीढ़ी से ही आ जाऊँगी। परन्तु सोने की सीढ़ी से वह सोने के महल में चढ़ी।
         बहुत देर तक महल में अनेक प्रकार की वस्तुएँ सजी हुई देखकर वह आश्चर्यचकित हुई। उस बालिका को थकी हुई देखकर कौआ बोला- 'पहले नाश्ता कर लीजिए- बोलो, तुम सोने की थाली में भोजन करोगी अथवा चाँदी की थाली या ताँबे की थाली में ?' लड़की बोली- ताँबे की थाली में ही मैं- 'गरीब भोजन करूँगी।' तब वह आश्चर्यचकित हुई जब सुनहरा कौए द्वारा सोने की थाली में भोजन परोसा गया। ऐसा स्वादिष्ट भोजन बालिका ने आज तक नहीं खाया था। कौआ बोला- है बालिका! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं रहो परन्तु तुम्हारी माता तो अकेली हो जाएगी। इसलिए 'तुम जल्दी ही अपने घर जाओ।'
      ऐसा कहकर कौआ कमरे के अन्दर से तीन पेटियाँ निकालकर उस बालिका से फिर बोला- 'हे बालिके। अपनी इच्छानुसार एक पेटी ले लो।' छोटी पेटी लेकर बालिका ने कहा यह ही मेरे चावलों का मूल्य है
        घर आकर उसने पेटी को खोला, उस पेटी में बहुमूल्य हीरे देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई और उस दिन से वह बहुत धनवान हो गई । 
        उस ही गाँव में एक दूसरी लोभी वृद्धा रहती थी। उसकी भी एक पुत्री थी। ईर्ष्या से वह उस सुनहरे कौए का रहस्य जान गई। धूप में चावल डालकर उसने भी अपनी पुत्री को रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया। वैसे ही सोने के पंखों वाले कौए ने चावल खाकर उसे भी वहीं बुलाया। सुबह वहाँ जाकर वह कौए का तिरस्कार करती हुई बोली- 'हे नीच कौए ! मैं आ गई हूँ, मुझे चावलों का मूल्य दो ।' कौआ बोला- 'मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। तो कहिए सोने की सीढ़ी, चाँदी की अथवा ताँबे की सीढ़ी लाऊँ।' बालिका ने घमण्डपूर्वक कहा- 'सोने की सीढ़ी से मैं आती हूँ। परन्तु सुनहरा कौआ उसके लिए ताँबे की सीढ़ी ही लाया। सुनहरे कौए ने उसे भोजन भी ताँबे के बर्तन में ही करवाया।
        वापिस लौटने के समय सुनहरे कौए ने कमरे के अन्दर से तीन पेटियाँ लाकर उसके सामने रखी। लालची बालिका ने सबसे बड़ी पेटी ली। घर आकर उत्सुकतापूर्वक उसने जब पेटी खोली तो उसमें भयानक काला साँप देखा। लोभी बालिका को लालच का फल प्राप्त हुआ । उसके बाद से उसने लालच करना छोड़ दिया।

                       -: अभ्यासकार्यम् :-


1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) माता काम् आदिशत् ?
      उत्तर- पुत्रीम्
(ख) स्वर्णकाकः कान् अखादत् ?
       उत्तर-  तण्डुलान्
(ग) प्रासादः कीदृशः वर्तते ?
     उत्तर-  स्वर्णमय:
(घ) गृहमागत्य तया का समुद्घाटिता ?
        उत्तर-  मंजूषा
(ङ) लोभाविष्टा बालिका कीदृशीं मञ्जूषां नयति ?
       उत्तर-  बृहत्तमाम्

(अ) अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- 
(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत्?
उत्तर- निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोहरा च आसीत् ।

(ख) बालिकया पूर्वं कीदृशः काकः न दृष्टः आसीत्?
उत्तर- बालिकया पूर्वम् स्वर्णपक्षो रजतचंचुः स्वर्णकाकः न दृष्टः आसीत् ।

(ग) निर्धनाया दुहिता मञ्जूषायां कानि अपश्यत् ?
उत्तर- निर्धनायाः दुहिता मंजूषायां महार्हाणि हीरकाणि अपश्यत् ।

(घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता? 
उत्तर- बालिका वृक्षस्योपरि स्वर्णमयः प्रासादः दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता ।

(ङ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अयाचत कीदृशं च प्राप्नोत् ।
उत्तर- गर्विता बालिका स्वर्णमयं सोपानम् अयाचत् परं सा ताम्रसोपानमेव प्राप्नोत् ।

2. ( क ) अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत-

(i) पश्चात्               पूर्वम्
(ii) हसितुम्            रोदितुम्
(iii) अधः               उपरि
(iv) श्वेत:               कृष्णः
(v) सूर्यास्त:           सूर्योदय:
(vi) सुप्तः             प्रबुद्धः

(ख) सन्धिं कुरुत-

(i) नि + अवसत्     =   न्यवसत्
(ii) सूर्य + उदयः     =   सूर्योदय:
(iii) वृक्षस्य + उपरि =  वृक्षस्योपरि
(iv) हि + अकारयत् = ह्यकारयत्
 (v) च + एकाकिनी = चैकाकिनी
(vi) इति + उक्त्वा   =  इत्युक्त्वा
(vii) प्रति + अवदत् =  प्रत्यवदत्
(viii) प्र + उक्तम्     =  प्रोक्तम्
(ix) अत्र + एव       =   अत्रैव
(x) तत्र + उपस्थिता =   तत्रोपस्थिता 
(xi) यथा + इच्छम्   = यथेच्छम्


3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत्।
उत्तर-  ग्रामे का अवसत् ?

(ख) स्वर्णकाकं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत् । 
उत्तर- कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत् ?

(ग) सूर्योदयात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता ।
उत्तर- कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता ?

(घ) बालिका निर्धनमातुः दुहिता आसीत्। 
उत्तर- बालिका कस्याः दुहिता आसीत् ?

(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती । 
उत्तर- लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती ?

4. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत (पाठात् चित्वा वा लिखत ) -

(क) वि + लोकृ + ल्यप्      =     विलोक्य
(ख) निक्षिप् + ल्यप्           =     निक्षिप्य
(ग) आ + गम् + ल्यप्        =     आगम्य
(घ) दृश् + क्त्वा                =      दृष्ट्वा
(ङ) शी+ क्त्वा                 =     शयित्वा
(च) लघु + तमप्               =      लघुतमः

5. प्रकृतिप्रत्यय-विभागं कुरुत-

(क) रोदितुम्        =         रूद् + तुमुन्
(ख) दृष्ट्वा          =         दृश् + क्त्वा
(ग) विलोक्य       =         वि + लोकृ + ल्यप्
(घ) निक्षिप्य        =        नि + क्षिप् + ल्यप्
(ङ) आगत्य        =        आ + गम् + ल्यप्
(च) शयित्वा       =        शी + क्त्वा
(छ) लघुतमम्     =        लघु + तमप्

6. अधोलिखितानि कथनानि कः/का, कं/कां च कथयति-

कथनानि                                                    कं/काम्
(क) पूर्व प्रातराश: क्रियाताम्                           बालिकाम्
(ख) सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।                बालिकाम्
(ग) तण्डुलान् मा भक्षय।                              स्वर्णकाकम्
(घ) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।                स्वर्णकाक:
(ङ) भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं तण्डुल   लुब्धाबालिका                                                                  स्वर्णकाकम्


7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-

यथा मूषकः बिलाद् बहिः निर्गच्छति (बिल)

(क) जनः ग्रामात्  बहिः आगच्छति। (ग्राम)
(ख) नद्यः पर्वतात् निस्सरन्ति । (पर्वत)
(ग) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । (वृक्ष)
(घ) बालकः सिंहात् विभेति ? (सिंह) 
(ङ) ईश्वरः क्लेशात् त्रायते । (क्लेश)
(च) प्रभुः भक्तं पापात् निवारयति । (पाप)




लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं

।।लक्ष्यमस्ति निश्चितं।।
   ।। तथा विचारितं।।

लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं,
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्......।।

आंग्ल भाषया हि आंग्ल मध्य पाठ्यते..
हिन्दी हिन्दी भाषया तथैव शिक्षते।
संस्कृतेन संस्कृतं कथं न पाठ्यते..
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्....।।

लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं,
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्......।।

बौद्धिकारिकं तथासु दिप्ति कारिकम्..
रहस्य भेदनं विधाय तुष्टि दायकम्..
रसानु भूति ये नो जायते ध्रुवम्..
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्.।।

लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं,
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्......।

साध्यमस्ति सस्कृतेन शिक्षणं वरम्..
श्रद्धया स्वनिष्ठया विवर्धितं वरम्..
नास्ति क्लिष्टतायुतं विरम्यते कथम्..
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्..।।

लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं,
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्......।

लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं,
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्......।

लक्ष्यमस्ति निश्चितं तथा विचारितं,
आचरेम मित्र संस्कृतेन पाठनम्......।

Youtube link:- https://youtu.be/wwIKmaEAva4

भवतु भारतम्

भवतु भारतम्

शक्तिसम्भृतं युक्तिसम्भृतम्
शक्तियुक्तिसम्भृतं भवतु भारतम् ।।

शस्त्रधारकं शास्त्रधारकम्
शस्त्रशास्त्रधारकं भवतु भारतम् ।।

रीतिसंस्कृतं नीतिसंस्कृतम्
रीतिनीतिसंस्कृतं भवतु भारतम् ।।

कर्मनैष्ठिकं धर्मनैष्ठिकम्
कर्मधर्मनैष्ठिकं भवतु भारतम् ।।

भक्तिसाधकं मुक्तिसाधकम्
भक्तिमुक्तिसाधकं भवतु भारतम् ।।

भारतं भारतं भवतु भारतम्
भारतं भारतं भवतु भारतम्।।

https://youtu.be/X2xPEpdslf4

कालिदासो जने जने


कालिदासो जने-जने कण्ठे-कण्ठे संस्कृतम् ।
ग्रामे-ग्रामे नगरे-नगरे गेहे गेहे संस्कृतम् ॥.....


सरला भाषा मधुरा भाषा दिव्य भाषा संस्कृतम् ।
मुनिजनवाणी कविजनवाणी प्रियजन वाणी संस्कृतम् ॥1
कालिदासो जने-जने कण्ठे-कण्ठे संस्कृतम् ......


वसतो-वसतो रामचरितम् प्रियजन भाषा संसकृतम् ।
सदने-सदने भारत देशे ग्रामे-ग्रामे संस्कृतम् ॥2
कालिदासो जने-जने कण्ठे-कण्ठे संस्कृतम् ......


मुनिजन वांञ्छा कविजन वांञ्छा प्रियजन वांञ्छा संस्कृतम् ।
वदने-वदने कार्यक्षेत्रे वार्तालापे संस्कृतम् ॥3
कालिदासो जने-जने कण्ठे-कण्ठे संस्कृतम् ......

https://youtu.be/dksTsJDRi7Q

मंगलवार, 9 मई 2023

संस्कृत-प्रार्थना :- दयां कृत्वा हि विद्याया:

दयां कृत्वा हि विद्याया: , प्रभो दानं सदा देयम् ,
सदास्माकं हि चित्तेषु , दयस्व शुद्धता नेया |
प्रभो ! आयातु नो ध्याने, वसतु नेत्रेषु अस्माकम्

तमोयुक्तेषु हृदयेषु, परा आभासमादेया | 
प्रवाह्य ज्ञानगङ्गां च, हृदित्वं स्नेहसिन्धु च

मिथः सम्मिल्य वासस्य, प्रभो शिक्षा सदा देया |
सदा नः धर्मसेवा स्यात्, सदा नः कर्म सेवा स्यात् 
सदा शीलं हि सेवा स्यात्, परा निष्ठा समादेया |
भवेन्मे जीवनं भगवन्, तथा मरणं हि देशाय
तदर्थं जीवनत्याग:, प्रभो शिक्षा इयं देया ।

मंगलवार, 2 मई 2023

संस्कृत साहित्य परिचय


       संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। इसका साहित्यिक प्रवाह वैदिक युग से आज तक अबाध गति से चल रहा है। श्रद्धावश लोग इसे देववाणी तथा सुरभारती भी कहते थे। यह अधिसंख्यक भारतीय भाषाओं की जननी तथा सम्पोषिका मानी जाती है। राष्ट्रीय एकता एवं विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसमें रचित साहित्य का सत्य, अहिंसा, राष्ट्रभक्ति पृथ्वी-प्रेम, परोपकार, त्याग तथा सत्कर्म आदि भावनाओं के प्रसारण में अमूल्य योगदान है। संस्कृत का समकालीन साहित्य आधुनिक समस्याओं तथा मानव के संघर्षों को भी आत्मसात् करता है, जिससे विश्व के अन्य साहित्य की तुलना में संस्कृत की संवेदनशीलता को न्यूनतर नहीं माना जा सकता है।

प्राचीनकाल में, संस्कृत की रचनाएँ हजारों वर्षों तक मौखिक परम्परा में सुरक्षित रहीं तो आज की संस्कृत कृतियों का वैज्ञानिक विकास तथा तकनीकी प्रगति के साथ समन्वय उन्हें अद्यतन बनाता है। यह गौरव का विषय है कि न्यूनतम चार हजार वर्षों की संस्कृत-साहित्य-धारा में भारतीय समाज का प्रत्यंकन प्रायः प्रामाणिक रूप से होता रहा है, जहाँ भारतीय संस्कृति की समन्वय प्रवृत्ति परिलक्षित होती है।

संस्कृत को मात्र प्राचीनता के लिए ही पढ़ना पर्याप्त नहीं है, अपितु अपने देश के बहुभाषिक परिदृश्य में संस्कृत की महत्ता राष्ट्र की एकता के लिए सर्वोपरि है। आधुनिक भारतीय भाषाओं पर संस्कृत के व्याकरण, शब्द-सम्पत्ति तथा वाक्य रचना का व्यापक प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ा है। अन्य भाषाओं के समान आधुनिक संस्कृत भारतीय बहुभाषिकता का एक अभिन्न अंग है। जिस प्रकार बहुभाषी कक्षा में अन्य भाषाओं को सीखने में संस्कृत सहायक होती है उसी प्रकार कक्षा में उपलब्ध बहुभाषिकता (Multi-lingualism) का संस्कृत सीखने में उपयोग किया जा सकता है।

प्राचीन संस्कृत साहित्य के दो रूप प्राप्त होते हैं-वैदिक तथा लौकिक । वैदिक साहित्य के अन्तर्गत संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद् ग्रन्थ आते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद इन चारों वेदों को संहिता कहते हैं। इन संहिताओं में जिन मंत्रों का संकलन है उनकी कर्मकाण्ड परक व्याख्या करने वाले ग्रन्थों को 'ब्राह्मण' कहा जाता है। आरण्यकों की रचना वनों में हुई। इनमें वैदिक कर्मकाण्ड की प्रतीकात्मक व्याख्या है। उपनिषदों

सोमवार, 1 मई 2023

कारक के चिह्न (विभक्ति चिह्न)

कारक के नाम            चिह्न                       विभक्ति
   कर्ता।                      ने                         प्रथमा 
   कर्म                       को                        द्वितीया
   करण                से,【द्वारा】।              तृतीया
  सम्प्रदान             को, के लिए                  चतुर्थी
  अपादान             से ,【अलग】              पंचमी
  सम्बन्ध            का,के,की,रा,रे,री               षष्ठी
 अधिकरण             में ,पर                        सप्तमी।